Friday, January 21, 2011

अधूरी साँस

चाँद के आंगन में 
कितनी रातें काट दी तुमने
तारों के दाने चुनते-चुनते
तेरा इंतज़ार आवाज देकर
बुलाता रहा मुझको
मैने भी कितनी बार चाहा
कि तुम तक
लम्हों के सन्देश भेज दूँ
मगर इत्तफाक ने 
कभी मौका ही नहीं दिया


अधूरी सांस लिए
हम जी तो सकते हैं
मगर मौत को तो
पूरी की पूरी साँस चाहिए
हिसाब की बहुत पक्की है वो
और वक़्त की पाबंद भी।
देखो न!
कितनी देर से
खड़ी है वो मेरे पास


अब, आ भी जाओ
के एक पल के लिए ही सही 
हम पूरी साँस तो जी लें।

3 comments:

  1. तेरा इंतज़ार आवाज देकर
    बुलाता रहा मुझको..
    वाह... क्या बात कह दी...

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  2. अधूरी सांस लिए
    हम जी तो सकते हैं
    मगर मौत को तो
    पूरी की पूरी साँस चाहिए

    Dil ko choo lene waali pankti .. Mubarak baad

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